- कृपया हमें लुप्त होने से बचा लो!
- प्रजातियां के लुप्तप्राय होने के कारण: प्राकृतवास और आनुवंशिक विविधता की क्षति।
- प्राकृतवास का खोनाः निवास स्थान का नुकसान स्वाभाविक रूप से भी हो सकता है। मानव गतिविधि भी निवास स्थान के नुकसान में योगदान करतीं है। आवास, उद्योग और कृषि के विकास से देशी जीवों का आवास कम हो जाता है। यह कई अलग-अलग तरीकों से हो सकता है।
- आनुवंशिक भिन्नता की क्षति: आनुवंशिक भिन्नता एक प्रजाति के भीतर पाई जाने वाली विविधता है। यही कारण है कि मनुष्य के बाल सुनहरे, लाल, भूरे या काले हो सकते हैं। आनुवंशिक भिन्नता प्रजातियों को पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों के अनुकूल ढलने की अनुमति देती है। आमतौर पर, किसी प्रजाति की जनसंख्या जितनी अधिक होगी, उसकी आनुवंशिक विविधता उतनी ही अधिक होगी।
विश्व के 10 सबसे लुप्तप्राय प्राणी
- जावन गैंडे
- अफ्रीकी वन हाथी
- अमूर तेंदुआ
- सुंडा द्वीप बाघ
- माउंटेन गोरिल्ला
- अपानुली ओरांगुटान
- ओरंगुटान सुमात्राण
- यांग्त्जी फिनलेस
- पोरपोइज हॉक्सबिल कछुए
- काले गैंडे
भारत में लुप्तप्राय हो रही 10 प्रमुख प्रजातियां
- हिम तेंदुआ
- संगई मणिपुरी हिरण
- एशियाई शेर
- बंगाल टाइगर
- नीलगिरि थार
- कश्मीरी रेड स्टैग
- एक सींग वाला गैंडा
- शेर-पूंछ वाला मकाक
- देदीप्यमान वृक्ष मेंढक
- गौड़वण पक्षी
आपने देखा होगा कि आपके क्षेत्र, राज्य, और देश में बहुत सी वन्य प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं, और कई प्रजातियां पूर्व में हीं विलुप्त हो चुकीं हैं। एक बार जो प्रजाति हमारे ग्रह से विलुप्त हो जाती है, उसे वापस नहीं लाया जा सकता है। अतः यह श्रेयष्कर है कि हम ऐसी संकटापन्न प्रजातियों के प्राकृतवास समाप्त न होने दें। यदि विकास आदि के विभिन्न प्रोजेक्ट के कारण ऐसा हो रहा है तो कृपया उनका पुरजोर विरोध करें, और उनके संरक्षण में अपनी सक्रियता सहभागिता सुनिश्चित करें।_
- शुभ लुप्तप्राय: प्रजाति दिवस!!
लेखक : नरेन्द्र सिंह चौधरी, भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं. इनके द्वारा वन एवं वन्यजीव के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किये हैं.