उत्तराखंड में स्कूलों ने वसूली कैपिटेशन फीस तो होगी सख्त कार्रवाई, डीजी शिक्षा बंशीधर तिवारी ने दिए निर्देश

देहरादून: आपके बच्चे भी प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते होंगे। इसके लिए आप मोटी फीस भी चुकाते होंगे। लेकिन, स्कूल आपसे कुछ अतिरिक्त पैसा भी वूसल लेते हैं, जिसकी आपको रशीद भी नहीं दी जाती है। इस फीस को लेकर अक्सर अभिभावक परेशान भी रहते हैं। शिकायत भी करते हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। अब शिक्षा महानिदेशक बंशीधर तिवारी ने ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।

उनका साफतौर पर कहना है कि स्कूलों में एडमिशन के लिए कैपिटेशन फीस वसूलने वाले प्राइवेट स्कूलों की मान्यता रद्द की जाएगी। स्कूलों में अतिरिक्त पैसा वसूले जाने की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए डीजी-शिक्षा बंशीधर तिवारी ने सभी AD, CEO और DEO को कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। स्कूल को उसकी फीस के बाबत अभिभावक को भी रसीद देनी होती है। लेकिन, इसके बाद भी कुछ स्कूल संचालक फीस के अलावा भी मोटा पैसा वसूल रहे हैं। यह पैसा एडमिशन के वक्त कैपिटेशन फीस के नाम पर वसूला जाता है।

उत्तराखंड में 44 सौ से भी ज्यादा प्राइवेट स्कूल हैं। कई स्कूल ऐसे हैं, जनमें एडमिशन के लिए मारामारी रहती है। अभिभावकों की मजबूरी और एडमिशन लेने की होड़ की आड़ लेकर ही स्कूल संचालक अतिरिक्त फीस वसूलते हैं, जिसे कैपिटेशन फीस कहा जाता है। इस फीस को रोकने के लिए कई राज्यों में कानू भी बनाए गए हैं।

ये है कैपिटेशन फीस

कैपिटेशन फीस को इस प्रकार परिभाषित किया गया है, वह राशि जो संस्था की आय और पूंजीगत व्यय व उचित अधिशेष के रूप में आवश्यक राशि से अधिक ली जाती है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु ने ऐसे कानून बनाए हैं, जो कैपिटेशन फीस वसूलने पर रोक लगाते हैं।

केरल स्व-वित्तपोषित व्यावसायिक महाविद्यालय (कैपिटेशन फीस का निषेध और प्रवेश एवं फीस निर्धारण की प्रक्रिया) अधिनियम 2004 में कैपिटेशन फीस को इस प्रकार परिभाषित किया गया है। कैपिटेशन फीसष् से तात्पर्य किसी भी नाम से ज्ञात कोई भी राशि से है, चाहे वह नकद हो या वस्तु के रूप में, जो धारा 4 के तहत निर्धारित फीस के अतिरिक्त प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भुगतान या एकत्र या प्राप्त की गई हो।

उन्नी कृष्णन फैसला

1993 में उन्नी कृष्णन मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया कि कैपिटेशन फीस वसूलना गैरकानूनी है। फैसले में कर्नाटक शैक्षणिक संस्थान (कैपिटेशन फीस निषेध) अधिनियम 1984 में दी गई परिभाषा का हवाला दिया गया। इस फैसले में कैपिटेशन फीस का अर्थ इस तरह से दिया गया है कि कोई भी राशि, चाहे किसी भी नाम से पुकारी जाए, जो निर्धारित फीस से अधिक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भुगतान या एकत्र की जाती है, वह पूरी तरह से गैर कानूनी है।

2001 में सर्वाेच्च न्यायालय के एक अन्य फैसले में महाराष्ट्र शैक्षणिक संस्थान (कैपिटेशन शुल्क निषेध) अधिनियम, 1987 में दी गई परिभाषा को उद्धृत किया गया है। महाराष्ट्र शैक्षणिक संस्थान (कैपिटेशन फीस का निषेध) अधिनियम, 1987, धारा 3(ए) – कैपिटेशन फीस – अर्थ – अधिनियम की धारा 2(ए) में कैपिटेशन फीस की परिभाषा दी गई है। कैपिटेशन फीस का अर्थ है-कोई भी राशि, चाहे वह किसी भी नाम से पुकारी जाए, चाहे नकद हो या वस्तु के रूप में, धारा-4 के तहत निर्धारित या स्वीकृत फीस दरों से अधिक हो, वह पूरी तरह से गलत और कानून के विरुद्ध है।

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